बदला मिज़ाज कुछ ऐसा,
की सारे नज़ारे ही खो गए।
है आसमाँ खाली खाली,
सारे सितारे खो गए।
अज़ब रंग देखा अँधेरे का,
निकला जब सूरज,
अँधियारे खो गए।
शक था मेरे हिज़्र को मेरे ईमाँ पर।
ईमान तो ना बदला,
हिज़्र के आशियाने बदल गए।
तारुफ़ अब कोई क्या करेगा,
मेरा उल्फ़त के पैमानों से।
आया जो तूफाँ तो किनारे ही बदल गए।
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