हर आरज़ू आधूरी क्यों रह जाती है।
हर बार दिल में तन्हाई सी क्यों रह जाती है।
दर्द सितम बन क्यों मुझ पर छा जाता है।
हर बार यह क्यों मुझको तड़पा जाता है।
आरज़ू मेरे दिल की दिल में क्यों रह जाती है।
हर बार जमाना ही क्यों मेरी दास्ताँ बना जाता है।
अँधेरा बन तन्हाई क्यों मुझमे समाँ जाती है।
हर बार बिना रास्ते की मंज़िल क्यों मुझको दिखा जाती है।
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