कुछ बदलना इतना मुश्किल क्यों होता है।
ज़िन्दगी जीना इतना मुश्किल क्यों होता है।
आग तो यहाँ लगी सबके भीतर होती है।
फिर आवाज़ उठाना इतना मुश्किल क्यों होता है।
शायद हमको यूँ ही है ज़ीने की आदत।
यूँ ही घुट घुट कर मरने की आदत।
कोई हमारे लिए कुछ कर दे,
इस उम्मीद में तो हम रहते हैं।
पर किसी और के लिए कुछ करना,
हमारे लिए इतना मुश्किल क्यों होता है।
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