जब भी मैं चाँद का ख्वाब देखता हूँ।
अपने तसवुर में तुझे सोचता हूँ।
तेरे हसीं रुख पर बिखरी झुल्फ़ को।
अपनी उँगलियों से संवारता हूँ।
तेरी आँखों की नीली सी गहराइयों में।
पल भर में ही मैं डूब सा जाता हूँ।
फिर न मुझे कोई होश रहता है।
एक तू रहता है और एक मैं रहता हूँ।
न पलकें झपकती हैं न लब कुछ कहते हैं।
यूँ ही पल गुजरते हैं जब मैं तेरे साथ होता हूँ।
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